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________________ उ० ४ सूत्र २३ ८६५ व्यवहारसूत्र-सूची ख- वर्षावास में ग- प्रमुख निर्ग्रन्थ के बिना रहने पर प्रायश्चित्त १३ घ. रुग्ण प्रमुख के आदेशानुसार प्रमुख पद देना ङ- गण का विरोध होने पर प्रमुख पद का त्याग न करे तो प्रायश्चित्त १४ च- अपध्यानी आचार्य-उपाध्याय के आदेशानुसार प्रमुख पद देना छ- गण का विरोध होने पर प्रमुख पद का त्याग न करे तो प्रायश्चित्त १५-१७ यावज्जीवन का सामायिक चारित्र क-ख- उपस्थापना काल में उपस्थापना न करे तो आचार्य-उपाध्याय को प्रायश्चित्त ग- कारणवश उपस्थापना न करे तो प्रायश्चित्त नहीं अन्य गण का आराधन प्रमुख निर्ग्रन्थ की निश्रा में रहना बहुश्रुत की निश्रा में रहना स्वर्मियों का साथ रहना क- स्थविर को पूछ कर अनेक स्वधर्मी साथ रहें ख- बिना पूछे न रहे ग- बिना पूछे रहे तो प्रायश्चित्त २०-२३ अकेले विचरने का प्रायश्चित्त क- पाँच रात्रि पर्यन्त का प्रायश्चित्त ख- पाँच रात्रि से अधिक का प्रायश्चित्त ग- स्थविर के मिलने पर पाँच रात्रि पर्यन्त के प्रायश्चित्त की आलोचना घ- स्थविर के मिलने पर पाँच रात्रि से अधिक के प्रायश्चित्त की आलोचना १८ . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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