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________________ -समवायांग-सूची २२० समवाय १८ ७ सहस्रार कल्प के कुछ देवों की जघन्य स्थिति ८ सामान आदि विमानवासी देवों की स्थिति १ सामान आदि विमानवासी देवों का श्वासोच्छवास काल १ सामान आदि विमानवासी देवों का आहारेच्छा काल १ कुछ भवसिद्धिकों की सत्रह भव से मुक्ति सूत्र संख्या २१ अट्ठारहवां समवाय १ ब्रह्मचर्य २ भ० अरिष्टनेमी की उत्कृष्ट श्रमण सम्पदा ३ सर्व साधुओं के आचार स्थान ४ चूलिका सहित आचाराङ्ग के पद ५ ब्राह्मी लिपि के प्रकार ६ अस्ति-नास्ति प्रवाद के वस्तु ७ धूमप्रभा का बाहल्य-मोटाई ८ पोषमास में रात्रि के मुहूर्त ६ अषाढमास में दिन में मूहर्त १ रत्नप्रभा के कुछ नैरयिकों की स्थिति २ धूमप्रभा के कुछ नैरयिकों की स्थिति ३ कुछ असुर कुमारों की स्थिति '४ सौधर्म-ईशान कल्प के कुछ देवों की स्थिति ५ सहस्त्रार कल्प के देवों की उत्कृष्ट स्थिति ६ आनत कल्प के देवों की जघन्य स्थिति ७ काल आदि विमानवासी देवों की स्थिति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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