________________
स्थानांग-सूची
१६६ श्रु०१, अ०५, उ०२ सूत्र ४३१ ङ- एक (इक्कीसवें) दण्डक में पेज्जवत्तिया आदि पांच क्रियाएं ४२० पांच प्रकार की परिज्ञा ४२१
" का व्यवहार ४२२ क- सुप्त संयत के पांच जागृत
जागृत" के " सुप्त ख- असंयत के पांच जागृत
जागृत " पांच जागृत ४२३ क- कर्म बंध के पांच कारण
ख- " क्षय" " " ४२४ पंच मासिकी भिक्षु पडिमा की विधि ४२५ पांच प्रकार की सदोष एषणा
" " " निर्दोष " ४२६ बोधि की दुर्लभता के पांच कारण
" " सुलभता के " " ४२७ पांच इन्द्रिय जय
" ' पराजय पांच संवर
" असंवर ४२८ पांच प्रकार का संयम ४२६ क- ऐकेन्द्रिय जीवों की रक्षा से पांच प्रकार का संयम
ऐकेन्द्रिय जीवों की हिंसा से पांच प्रकार का असंयम ४३० क- पंचेन्द्रिय जीवों " रक्षा " " " संयम
ख- " " " हिंसा " " " असंयम ४३१ क- सर्व प्राण भूत जीव और सत्वों की रक्षा करने से पांच प्रकार
का संयम ख. " " " " हिंसा " " असंयम
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org