________________
श्रु०१ अ०५ उ०२ सूत्र ४३७ १६७
स्थानांग-सूची ४३२ पांच प्रकार का आहार
" " " आचार प्रकल्प (प्रायश्चित्त)
" " की आरोपणा-एक प्रायश्चित्तके साथ दूसरा प्रायश्चित ४३४ वक्षस्कार पर्वत क- जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत से पूर्व में और सीता नदी के उत्तर में
पांच वक्षस्कार पर्वत ख- सीता नदी के दक्षिण में पांच वक्षस्कार पर्वत ग- जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत से पश्चिम में और सीता महानदी के
दक्षिण में पांच वक्षस्कार पर्वत घ- सीता महानदी के उत्तर में पांच वक्षस्कार पर्बत
महाद्रह ङ- जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत से दक्षिण में देवकुरु में पांच महा द्रह च- "
" " उत्तरकूरु " " वक्षस्कार पर्वत छ- सर्व वक्षस्कार पर्वतों की ऊंचाई और गहराई ज- धातकी खण्ड के पूर्वार्द्ध में क. ख. ग. और घ के समान पांच
पांच वक्षस्कार पर्वत झ- पश्चिमार्ध में भी २० वक्षस्कार पर्वत. समय क्षेत्र में पांच
भरत-यावत्-मेरु चूलिकाएं. चतुर्थ अ०, द्वितीय उद्देशक, सूत्रांक
३०६ के समान ४३५ भ० ऋषभदेव की ऊँचाई,
भरत चक्रवर्ती की " बाहुबली की ब्राह्मी की
सुन्दरी की ४३६ जाग्रत होने के ५ कारण
निग्रंथ-निग्रंथियों को सहारा देने के पांच कारण
४३७
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org