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________________ ( २४ ) उत्तरदायित्व मुझे निभाना था, इसलिए मन हल्का नहीं हो पा रहा था । चारों अनुयोगों के प्रकाशन का कार्य सामान्य तथा बहुत बड़ी अर्थ - राशि इसके लिए अपेक्षित थी, दो वर्ष पर्यन्त संकलित संग्रह पड़ा रहा । देहली आनेपर धर्मस्नेही सज्जन ताराचन्द प्रतापजी दर्शनार्थ आये, आगम अनुयोग के प्रकाशन के संबंध में विचार-विनिमय हुआ, फलस्वरूप "आगम अनुयोग प्रकाशन" की स्थापना हुई। आपका सहयोग प्रारम्भ से ही था, अनुवाद कार्य भी आपकी ही प्रेरणा से सम्पन्न हुआ था, इसलिए प्रकाशन कार्य सम्पन्न करवाने की आपके मन में बड़ी लगन है, आपके उत्साह को देखकर शा० हिम्मतमल प्रेमचन्दजी, मेघराज जसराजजी, फूलचन्द चुन्नीलाल जी, निहालचन्द कपूरजी आदि ने प्रकाशन व्यय के लिए विपुल वित्तराशि का संग्रह करवाने में तथा प्रकाशन कार्य में पूर्ण सहयोग देने की दृढ़ प्रतिज्ञा की है, आप सब भ० महावीर के प्रवचनों की प्रभावना करनेवाले सज्जन हैं । तपस्वी जी श्री गौरीलालजी महाराज का अनुपम सेवाभाव तपस्वीजी स्व० दिवाकर जी महाराज के प्रशिष्य हैं, और तपस्वी श्री नेमीचन्दजी म० के शिष्य हैं, आपने अतीत में बहुत तपश्चर्या की है । वर्तमान में आप ज्योतिष एवं मंत्र - शास्त्र विशारद वयोवृद्ध स्वामी जी श्री कस्तूरचन्दजी म० के आज्ञानुवर्ती हैं । मेरे साथ आपका तृतीय वर्षावास है, आपके उदार सहयोग से ही मैं इस पुस्तक के तथा आगम अनुयोग ग्रंथराज के संकलनादि कार्यों में संलग्न रह सका हूँ । मेरे जीवन में आपका यह सहयोग चिरस्मरणीय रहेगा, वयोवृद्ध होनेपर भी आपका अप्रमत्त भाव एवं साहस आदरणीय व अनुकरणीय है । आगमज्ञ विद्वानों से विनम्र अनुरोध, अन्त में आगमज्ञ विद्वानों से मेरा विनम्र अनुरोध है कि वे जैनागम निर्देशिका का आद्योपान्त निरीक्षण करके संशोधनार्थ सूचनाएं भेजें, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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