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( २३ ) ३. शा, प्रतापजी कपूरजी, बांकलीवास, ___आप दृढ़धर्मी एवं विवेकी श्रावक थे, आपके चार पुत्रों में से तीन पुत्र इस समय विद्यमान हैं, बड़े पुत्र, श्री हिम्मतमल जी आपके पहले ही स्वर्गस्थ हो गये, आपके चारों पुत्रों का परिवार धर्मप्रेमी एवं सेवाभावी है। मेरे श्रमण-जीवन की जन्मभूमि,
आज से तीन युग पूर्व मेरे श्रमण-जीवन का जन्म इसी नगर में चतुर्विध संघ के समक्ष हुआ था, अतः यहाँ के सभी धार्मिक जन मेरे प्रति अगाध स्नेह एवं पूज्य भाव रखते हैं । मेरी शिक्षा-दीक्षा में यहाँ का संघ प्रमुख रहा है।
सार्वजनिक हित के लिए शिक्षण-शाला की स्थापना
स्वर्गीय गुरुदेव श्री के प्रवचनों से प्रभावित होकर संघ ने उदारता दिखाई और राजस्थान शिक्षा विभाग को बहुत बड़ी अर्थराशि अर्पित कर प्राथमिक शाला प्रारम्भ करवाई । कुछ समय से शिक्षकवर्ग को माध्यमिक शाला की आवश्यकता प्रतीत हो रही थी, किन्तु स्थान की कमी थी, इसके लिए स्थानीय जैन दानवीरों ने उदारता दिखाकर चार विशाल कमरे बनवा दिए हैं, इनकी उदारता प्रशंसनीय है ।
'आगम अनुयोग' प्रकाशन की स्थापना,
पैतालीस आगमों को चार अनुयोगों में विभक्त करना और प्रत्येक विषय का अनुयोगानुसार वर्गीकरण करना समय-साध्य एवं श्रमसाध्य रहा, संकलन कार्य में ही कई वर्ष बीत गये । श्रद्धेय कवि श्री तथा पं० दलसुख भाई मालवणिया से दिशा निर्देशन मिला, और धैर्यपूर्वक कार्यरत रहने की प्रेरणा मिली। गणितानुयोग का अनुवाद डा० मोहनसिंहजी महता ने किया, चरणानुयोग का अनुवाद पं० शोभाचन्द्रजी भारिल्ल ने किया, इस प्रकार कुछ कार्य-भार हल्का तो हुआ, किन्तु प्रकाशन पर्यन्त सारा
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