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________________ समवायांग-सूची २४७ समवाय ८८-८९ २ मेरु पर्वत के दक्षिण चरमान्त से दगमास पर्वत के उत्तर चरमान्त का अन्तर ३ मेरु पर्वत के पश्चिमान्त से शंख आवास पर्वत के के पूर्व चरमान्त का अन्तर ४ मेरु पर्वत के उत्तर चरमान्त से दगसीम आवास पर्वत के दक्षिण चरमान्त का अन्तर ५ ज्ञानावरणीय और अन्तराय को छोड़कर शेष छह कर्मों की उत्तर प्रकृतियाँ ६ महाहिमवंत कूट के ऊपरी भाग से सौगंधिक काण्ड के अधोभाग का अन्तर ७ रुक्मी कूट के ऊपरी भाग से सौगंधिक काण्ड के अधोभाग का अन्तर अठासीवाँ समवाय १ क- एक चन्द्र के ग्रह ___ ख- एक सूर्य के ग्रह २ दृष्टिवाद के सूत्र ३ मेरु पर्वत के पूर्वान्त से गोस्तुभ आवास पर्वत के पूर्वान्त का अन्तर ४ क- मेरु पर्वत के दक्षिणान्त से दगभास आवास पर्वत के दक्षिणान्त का अन्तर ख- मेरुपर्वत के पश्चिमान्त से शंखपर्वत के पश्चिमान्त का अन्तर ग- मेरुपर्वत के उत्तरान्त से दकसीम आवास पर्वत के उत्तरान्त का अन्तर ५ उत्तरायन में दिन-रात की हानि-वृद्धि .६ दक्षिणायन में दिन-रात की हानि-वृद्धि नवासीवाँ समवाय १ भ० ऋषभदेव का निर्वाण-काल २ भ० महावीर का निर्वाण-काल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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