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________________ समवायांग-सूची २२२ समवाय २१ २ भ० मुनिसुव्रत की ऊंचाई ३ सर्व घनोदधि का बाहल्य ४ प्राणत देवेन्द्र के सामानिक देव ५ नपुंसक देवनीय की बंधस्थिति ६ प्रत्याख्यान पूर्व के वस्तु ७ उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी-कालचक्र---का परिमाण १ रत्नप्रभा के कुछ नैरयिकों की स्थिति २ तमःप्रभा के कुछ नैरयिकों की स्थिति ३ कुछ असुरकुमारों की स्थिति ४ सौधर्म-ईशान कल्प के कुछ देवों की स्थिति ५ प्राणत कल्प के कुछ देवों की उत्कृष्ट स्थिति ६ आरपण कल्प के कुछ देवों की जघन्य स्थिति ७ सात आदि विमानवासी देवों की स्थिति १ सात आदि विमानवासी देवों का श्वासोच्छ्वास काल १ सात आदि विमानवासी देवों का आहारेच्छा काल १ कुछ भवसिद्धिकों की बीस भव से मुक्ति सूत्र संख्या १७ इक्कीसवां समवाय १ सबल दोष २ अष्टम गुणस्थान में कर्मप्रकृतियों की सत्ता ३ अवसर्पिणी के पांचवें छ8 आरे के वर्षों का परिमाण ४ उत्सर्पिणी के पहले और दूसरे आरे के वर्षों का परिमाण .१ रत्नप्रभा के कुछ नैरयिकों की स्थिति २ तमःप्रभा के कुछ नरयिकों की स्थिति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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