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भगवती-सूची
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श०६उ०४ प्र० ५५
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संयत आदि के आठ कर्मों का बन्धन सम्यगधि जीवों के आठ कर्मों का बन्धन संज्ञी आदि के आठ कर्मों का बन्धन भव सिद्धिक आदि के कर्मों का बन्धन चक्षु दर्शन आदि दर्शन वाले जीवों के आठ कर्मों का बन्धन पर्याप्त आदि के आठ कर्मों का बन्धन भाषक आदि के आठ कर्मों का बन्धन परित्त आदि के आठ कर्मों का बन्धन आभिनिबोधिक ज्ञानी आदि के आठ कर्मों का बन्धन मति अज्ञानी आदि के आठ कर्मों बन्धन मनयोगी आदि के आठ कर्मों का बन्धन साकारोपयुक्त आदि के आठ कर्मो का बन्धन आहारक आदि के आठ कर्मों का बन्धन सूक्ष्म आदि के आठ कर्मों का बन्धन चरिम आदि के आठ कर्मों का बन्ध वेदकों का अल्प-बहुत्व
चतुर्थ सप्रदेशक उद्देशक ४८ काल की अपेक्षा जीव के सप्रदेश-अप्रदेश का चिन्तन ४६ चौबीस दण्डक में काल की अपेक्षा जीव के सप्रदेश-अप्रदेश का
चिन्तन ५० काल की अपेक्षा जीवों के सप्रदेश-प्रअदेश का चिन्तन ५१-५२ चौवीस दण्डक में काल की अपेक्षा जीवों के सप्रदेश-अप्रदेश
भागों का चिन्तन प्रत्याख्यान और आयुष्य ५३ जीव प्रत्याख्यानी आदि है ५४ चौवीस दण्डक के जीव प्रत्याख्यानी आदि हैं ५५ चौवीस दण्डकों के जीव प्रत्याख्यान आदि के ज्ञाता-अज्ञोता हैं
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