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अ० ५ उ० २ गाथा ७
दशवकालिक-सूची (३) भोगैषणा
भोजन करने की आपवादिक विधिः८२-८३ भिक्षा-काल में भोजन करने की विधि, ८४-८६ आहार में पड़े हुए तिनके आदि की परठने की विधि ८७ उपाश्रय में भोजन करने की विधि
स्थान-प्रतिलेखन पूर्वक भिक्षा के विशोधन का संकेत ८८ उपाश्रय में प्रवेश करने की विधि, इर्यापथिकी पूर्वक कायो
त्सर्ग करने का विधान । ८६-६० गोचरी में लगने वाले अतिचारों की यथाक्रम स्मृति
और उनकी आलोचना करने की विधि
सम्यग आलोचना न होने पर पुनः पुनः प्रतिक्रमण का विधान ६२ कायोत्सर्ग काल का चिन्तन
कायोत्सर्ग पूरा करने की और उसकी उत्तरकालीन विधि ६४-६५ विश्राम-कालीन चितन, साधुओं का भोजन लिए निमंत्रण,
सह भोजन ६६ एकाकी भोजन, भोजनपात्र और खाने की विधि ६७-६९ मनोज्ञ या अमोनज्ञ भोजन में समभाव रखने का उपदेश १०० मुधादायी और मुधाजीवी की दुर्लभता और उनकी गति
पिण्डैषणा (दूसरा उद्देशक) जूठन न छोड़ने का आदेश भिक्षा में पर्याप्त आहार न आने पर आहार-गवेषणा विधान यथा समय कार्य करने का निर्देश
अकाल भिक्षाचारी श्रमण को उपालम्भ ६ भिक्षा के लाभ और अलाभ में समता का उपदेश
भिक्षा की गमन विधि, भक्तार्थ एकत्रित पशुपक्षियों को लांघकर जाने का निषेध
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का
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