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________________ अ०५ उ० २ गाथा५० दशवैकालिक-सूची __ ८ गोचराग्र बेठने और कथा आदि कहने का निषेध ६ अर्गला आदि को उलंघर भिक्षा के लिए घर में जाने का निषेध १०-११ भिखारी आदि को लांघकर भिक्षा के लिए घर में जाने का निषेध और उसके दोषों का निरुपण उनके -- १२-१३ लौट जाने पर प्रवेश का विधान १४-१७ हरियाली को कुचलकर देने वाले से भिक्षा लेने का निषेध १८-१६ अपक्व सजीव फल आदि लेने का उपदेश २० एक बार भुने हुए शमी-धान्य को लेने का निषेध २१-२४ अपक्व, सजीव फल आदि लेने का उपदेश २५ सामुदायिक भिक्षा का विधान २६ अदीन भाव से भिक्षा लेने का उपदेश २७.२८ अदाता के प्रति कोप न करने का उपदेश २६-३० अस्तुति पूर्वक याचना करने व न देनेपर कठोर वचन कहने का निषेध उत्पादन के ग्यारहवें दोष “पूर्व संस्तव' का निषेध ३१-३२ रस लोलुपता और तज्जनित दुष्टपरिणाम ३३-३४ विजन में सरस-आहार और मण्डली में विरस आहार करने वाले की मनोभावना का चित्रण ३५ पूजाथिता और तज्जनित दोष ३६ मद्यपान करने का निषेध ३७-४१ स्तन्य-वृत्ति से मद्यपान करने वाले मुनि के दोषों का प्रदर्शन ४२-४४ गुणानुक्षी की संवर-साधना और आराधना का निरुपण . ४५ प्रणीत रस और मद्यपानवर्जी तपस्वी के कल्याण का उपदर्शन ४६-४६ तप आदि से सम्बन्धित माया-मृषा से होने वाली दुर्गति का निरूपण और उसके वर्जन का उपदेश ५० पिण्डैषणा का उपसंहार, समाचारी के सम्यग् पालन का उपदेश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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