SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 384
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती-सूची ३५६ श०१३ उ० ८-६ प्र०१२६ घ- भव अवधिमरण ङ- भाव अवधिमरण ११३ पांच प्रकार का आत्यन्तिक मरण ११४ चार प्रकार का द्रव्य आत्यन्तिक मरण ११५ क- नैरयिक द्रव्य आत्यन्तिक मरण कहने का हेतु ख-क्षेत्र आत्यन्तिक मरण ग- काल आत्यन्तिक मरण घ- भव आत्यन्तिक मरण ङ- भाव आत्यन्तिक मरण ११६ बारह प्रकार का बालमरण ११७ दो प्रकार का पंडित मरण ११८ दो प्रकार का पादपोपगमन मरण ११६ दो प्रकार का भक्तप्रत्याख्यान मरण अष्टम कर्मप्रकृति उद्देशक १२० आठ कर्म प्रकृितियाँ हैं नवम अनगार वैक्रिय उद्देशक भावित आत्मा अणगार का वैक्रिय लब्धि से आकाश गमन का सामर्थ्य १२२ भावित आत्मा अणगार की वैक्रिय लब्धि से रूप विकुर्वणा अणगार द्वारा विविध रूपों की विकुर्वणा का सामर्थ्य अणगार द्वारा वडवागल के रूप की विकुर्वणा का सामर्थ्य १२५ अणगार द्वारा जलौका के समान गति का सामर्थ्य १२६ अणगार द्वारा बीजबीजक पक्षि के समान गति का सामर्थ्य १२७ अणगार द्वारा विड़ालक पक्षी के समान गति का सामर्थ्य १२८ अणगार द्वारा जीवजीवक पक्षी के समान गति का सामर्थ्य १२६ अणगार द्वारा हंस पक्षी के समान गति का सामर्थ्य १२१ १२३ १२४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy