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सूत्रकृतांग-सूची
८१ श्रु०१, अ०१३, उ०१ गाथा ७ मिथ्यात्व से संसार की वृद्धि देव दानवों का भवभ्रमण अंगनाओं के अनुराग से भवभ्रमण कर्मक्षय बालजीव नहीं कर सकता है, संतोषी मेधावी पापकर्म नहीं करता बुद्ध पुरुषों का ही मोक्ष होता है कुछ लोग एकान्त ज्ञानवादी हैं-किन्तु धीर पुरुष पापकर्मों से सर्वथा विरत हैं आत्मसमदर्शी को दीक्षा ग्रहण करने के लिए उपदेश धर्मोपदेशक ही रक्षक है, धर्मोपदेशक के समीप ही निवास करने का विधान आत्मदर्शी ही लोकदर्शी है, जो संसार और मोक्ष का ज्ञाता है, वह जन्म मरण का ज्ञाता है जो नरक की वेदना जानता है वह आश्रव संवर और निर्जरा को जानता है अनासक्त रहने का उपदेश त्रयोदश यथातथ्य अध्ययन
प्रथम उद्देशक गाथांक
शील और अशील का रहस्य, शांति (मोक्ष) और अशांति (बंध) का रहस्य सुनने के लिए प्रेरणा समाधि मार्ग पर न चलने वाले निन्हवों का अविनय क्रोधान्ध का दुःखमय जीवन । क्रोधी समभाव को प्राप्त नहीं होता, सुशिष्य के लक्षण, आज्ञा पालन, पापकर्म भीरु, लज्जावान, श्रद्धालु और अमायावी होना विनयी शिष्य
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