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________________ __E राज प्र० सूची ५५२ सूत्र २५-२८ ष- चार प्रकार के गवैयों का गायन क्ष- " नृत्यों का प्रदर्शन त्र- " अभिनयों का प्रदर्शन ज्ञ- देवकुमार और कुमारियों का भगवान् को वंदना करके सूर्याभ के समीप पहुंचना २५ क- सुर्याभ द्वारा दिव्य ऋद्धि का संहार ख- भगवद् वंदना. सौधर्म कल्प गमन क- सूर्याभ प्रदर्शित दिव्य ऋद्धि विलय हेतु जिज्ञासा ख- कूटागार शाला के हेतु से समाधान. क- सूर्याभ विमान का स्थान ख- सूर्याभ विमान-विस्तार दिशायें ग- का संस्थान घ- सौधर्म कल्प के ३२ लाख विमान ङ- पांच अवतंसक विमानों के नाम च- सौधर्मावतंसक विमान से पूर्व में सूर्याभ विमान छ- सूर्याभ विमान का आयाम-विष्कम्भ ज- सूर्याभ विमान की परिधि २८ क- सूर्याभ विमान के प्राकार की ऊँचाई प्राकार के मूल का विष्कम्भ प्राकार के मध्य का विष्कम्भ ख- स्वर्णमय प्राकार, पंच वर्ण मणिमय कपि शीर्षक-कांगुरे, कपिशीर्षकों का आयाम-विष्कम्भ, कपिशीर्षकों की ऊँचाई ग- सूर्याभ विमान के एक पार्श्व के द्वार, द्वारों की ऊँचाई, द्वारों का विष्कम्भ, द्वारों के शिखर, द्वारों के भित्तिचित्र घ. द्वार कपाट वर्णन ङ- द्वारों के दोनों और चन्दन कलशों की पंक्तियाँ नाग दंतों (खूटियाँ) की पंक्तियाँ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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