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________________ सूत्र ४०.४३ ५७३ जीवाभिगम-सूची ग- गर्भज चतुष्पद संक्षेप में दो प्रकार के हैं घ- गर्भज चतुष्पदों के तेवीस द्वार हैं ङ- गर्भज परिसर्प दो प्रकार के हैं " उरपरिसर्प दो प्रकार के हैं च- गर्भज उरपरिसों के तेवीस द्वार छ- गर्भज भुजपरिसर्प दो प्रकार के हैं ज- " भुजपरिसों के तेवीस द्वार ४० क- गर्भज खेचर चार प्रकार के हैं ख- गर्भज खेचरों के तेवीस द्वार ४१ क- मनुष्य दो प्रकार के हैं ख- संमूछिम मनुष्यों की मनुष्यक्षेत्र में उत्पत्ति ग- संमूर्छिम मनुष्यों के तेवीस द्वार घ- गर्भज मनुष्य तीन प्रकार के हैं ङ- गर्भज मनुष्य संक्षेप में दो प्रकार के हैं च- गर्भज मनुष्यों के तेवीस द्वार ४२ क- देवता चार प्रकार के हैं। ख- भवनवासी देव दस प्रकार के हैं ग- वाणव्यन्तर देव सोलह प्रकार के हैं घ- " " संक्षेप में दो प्रकार के हैं क- स्थावर जीवों की स्थिति ख- त्रस जीवों की स्थिति ग- स्थावर संस्थिति का जघन्य उत्कृष्ट काल घ- त्रस संस्थिति का जघन्य उत्कृष्ट काल ङ- स्थावर पर्याय से पुनः स्थावर पर्याय प्राप्त होने का अन्तर काल च. त्रस पर्याय से पुनः त्रस पर्याय प्राप्त होने का अन्तर काल छ- त्रस और स्थावर जीवों का अल्प-बहुत्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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