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________________ जीवाभिगम-सूची ५७२ सूत्र ३७-३६ ख- संमूछिम चतुष्पद स्थलचर दो प्रकार के हैं ग- संमूर्छिम चतुष्पद स्थलचरों के तेवीस द्वार घ- संमूछिम स्थलचर परिसर्प दो प्रकार के हैं संमूछिम उरग स्थलचर परिसर्प चार प्रकार के हैं च- " सर्प अनेक प्रकार के हैं छ- " दर्वी (फण) कर सर्प अनेक प्रकार के हैं ज- " मकूलीकर सर्प अनेक प्रकार के हैं संमूछिम अजगर अनेक प्रकार के हैं आसालिक महोरग अनेक प्रकार के हैं " संक्षेप में दो प्रकार के हैं भुजग परिसर्प अनेक प्रकार के हैं " संक्षेप में दो प्रकार के खेचर चार प्रकार के हैं चर्मपक्षी अनेक प्रकार के हैं रोमपक्षी समुद्गकपक्षी " " विस्तृतपक्षी " " संक्षेप में दो प्रकार के हैं त- सम्मूर्छिम स्थलचर परिसर्प के तेवीस द्वार ३७ गर्भज तिर्यंच पंचेन्द्रिय तीन प्रकार के हैं ३८ क- गर्भज जलचर पांच प्रकार के हैं ख- " संक्षेप में दो प्रकार के हैं ग- गर्भज जलचरों के तेवीस द्वार ३६ क- गर्भज स्थलचर दो प्रकार के हैं ख- " चतुष्पद चार प्रकार के हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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