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________________ श्रु०१ अ०४ सू० १६ ५०७ प्रश्न० सूची. . अ- स्वार्थ सिद्धि के लिये मृषावाद ८ क- मृषावाद का इह लौकिक फल ख- मृषावादी की दुर्गतियां ग- मृषावाद का परिचय घ- द्वितीय अधर्मद्वार का उपसंहार तृतीय अदत्तादान अध्ययन एक उद्देकश ६ अदत्तादान का परिचय १० अदत्तादान के तीस नाम ११ क- चोरी करने वाले राजा आदि ख- संसार समुद्र का रूपक १२ क- चोरी का फल, विविध प्रकार के इह लौकिक दण्ड ख- नरक तिर्यंच और मनुष्य भव में अनेक भयंकर वेदनायें ग- तृतीय अधर्म द्वार का उपसंहार चतुर्थ अब्रह्मचर्य अध्ययन एक उद्देशक १३ अब्रह्मचर्य का स्वरूप १४ अब्रह्मचर्य के तीस नाम १५ क- अत्यधिक मैथुनसेवियों का वर्णन ख- देवताओं का वर्णन ग- चक्रवर्ती का वर्णन-उत्तम पुरुषों के लक्षण घ- बलदेव वासुदेव का वर्णन ङ. माण्डलिक राजाओं का वर्णन च- देवकुरु-उत्तरकुरु के मनुष्यों का वर्णन १६ क- मैथुन का फल ख- चतुर्थ अधर्म द्वार का उपसंहार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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