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________________ ( १६ ) बिना पुस्तक के हम आगम-ज्ञान को सुस्थिर न रख सकें। राजस्थानी भाषा के बृहत् काव्य बगड़ावत, तेजाजी आदि वर्तमान में भी राजस्थान के अनेक कृषकों को कण्ठस्थ हैं, वे उन काव्यों कायदाकदा पारायण भी करते हैं, यद्यपि उन्हें अक्षर-ज्ञान नहीं है, फिर भी उनको धारणा-शक्ति प्रबल है। इसी प्रकार राजस्थान की देवियाँ अपने सामाजिक गीतों को सदा कण्ठस्थ रखती हैं। वे सामाजिक प्रसंगों पर उनका पारायण करती रहती हैं। राजस्थानी भाषा के ये बृहत् काव्य और ये गीत अब तक लिपिबद्ध नहीं हुए हैं। कृषकों और स्त्रियों में अब तक भी श्रुत-परम्परा चल रही है । कृषकों और स्त्रियों से तो हमारे पूज्य संयमी श्रमण-श्रमणियों की धारणा-शक्ति निर्बल नहीं होनी चाहिए। हमारे पूज्य श्रमण श्रमणियों में आज स्मरण-शक्ति का चमत्कार दिखानेवाले कई शतावधानी और कई सहस्रावधानी हैं । इसलिए अतीत के समान आज भी जैनागमों का ज्ञान कण्ठस्थ करने की शक्ति हमारे पूज्य श्रमण-श्रमणियों में विद्यमान है। यदि आगम-भक्ति अधिक हो तो अतीत के स्वर्ण युग को पुनरावृत्ति असम्भव नहीं है । पुस्तक रखना अपवाद मार्ग है पुस्तक परिग्रह है एवं असंयम का हेतु है।' यह असंदिग्ध है। पर अनेक शताब्दियों से हमारे ऐसे संस्कार बन गए हैं कि-पुस्तक हमारे ज्ञान का साधन है। बिना पुस्तक के हम ज्ञानोपार्जन करने में असमर्थ हैं । इसलिए पुस्तक हमारी साधना का एक प्रमुख अंग बन गया है । अतीत में आचार्यों ने पुस्तक या लेखन अपवाद रूप में स्वीकार किया था वह अपवाद रूप आज प्रायः समाप्त हो गया है, यह उचित नहीं है । पुस्तक ज्ञान का साधन है और इस युग में बहुश्रुत होने के लिए पुस्तकों १ पोत्थएसु घेप्पतेसु. असंजमो-दशबैकालिक-अगस्त्यचूर्णी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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