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________________ सूत्र ४७ ५७५ ४७ क- तिर्यंच योनिक स्त्रियों की ख- जलचर तिर्यंच योनिक स्त्रियों की ग- चतुष्पद स्थलचर तिर्यंच योनिक स्त्रियों की जघन्य उत्कृष्ट स्थिति 17 33 घ- उरग परिसर्प स्थलचर ङ- भुजपरिसर्प च - खेचर तिर्यंच योनिक स्त्रियों की " जघन्य उत्कृष्ट स्थिति "" Jain Education International छ- मानव स्त्रियों की "" ज- धर्माचरण करनेवाली (मानव) स्त्रियों की "" 17 "f - कर्मभूमिनिवासिनी (मानव) 17 ܕ 17 ण- देवकुरु-उत्तरकुरुवासिनी स्त्रियों की संहरण की अपेक्षा त- अंतद्वपवासिनी स्त्रियों की देवियों की " アン " 33 73 जीवाभिगम-सूची धर्माचरण की अपेक्षा ठ - अकर्मभूमिवासिनी (मानव) स्त्रियों की संहरण की अपेक्षा 33 ड- हैमवत हैरण्यवत क्षेत्र वासिनी (मानव) स्त्रियों की संहरण की अपेक्षा 37 ढ - हरिवर्ष - रम्यक् वर्ष क्षेत्र वासिनी मानव स्त्रियों की संहरण की अपेक्षा धर्माचरण की अपेक्षा कर्मभूमिवासिनी स्त्रियों की अ- भरत - ऐरवत वासिनी (मानव) स्त्रियों की जघन्य उत्कृष्ट स्थिति धर्माचरण की अपेक्षा भरत ऐरवत वासिनी स्त्रियों की ," " 33 For Private & Personal Use Only ट- पूर्वविदेह अपरविदेह कर्मभूमिवासिनी स्त्रियों की उत्कृष्ट स्थिति ܕܙ 33 ار 37 "" 16 " 37 33 " 37 " " " " " "" 17 77 "3 "" 31 37 73 31 " 91 1) "" www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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