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________________ स्थानांग-सूची १६६ श्रु०१, अ०१०, उ०१ सूत्र ७३५. ७२२ सर्व वृत्त वैताढ्य पर्वतों की ऊँचाई और विष्कम्भ ७२३ जम्बूद्वीप के दश क्षेत्र ७२४ मानुषोत्तर पर्वत के मूल का विष्कम्भ ७२५ क- सर्व अंजनग पर्वतों की ऊंचाई, संस्थान और विष्कम्भ ख- सर्व दधिमुख पर्वतों को ऊंचाई और विष्कम्भ ग- सर्व रतिकर ,, , , , ,, ७२६ क- रुचक वर पर्वत के मूल का और ऊपर का विष्कम्भ ख- कुंडल ,, , , , , " " " ७२७ दश प्रकार का द्रव्यानुयोग ७२८ सर्व इन्द्रों और लोकपालों के उत्पातपर्वतों का परिमाण ७२६ क- बादर वनस्पतिकाय की उत्कृष्ट अवगाहना ख- जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यचों की , ग- उरपरिसर्प , , , " ७३० भ० संभवनाथ और भ० अभिनन्दन का अन्तर ७३१ दश प्रकार का अनंत ७३२ उत्पाद पूर्व की दस वस्तु अस्तिनास्तिप्रवाद पूर्व की दश चूलवस्तु ७३३ क- दश प्रकार की प्रतिसेवना ख- आलोचना के दश दोष ग- दश गुण युक्त श्रमण आत्मदोषों की आलोचना कर सकता है घ. दश प्रकार का प्रायश्चित्त दश प्रकार का मिथ्यात्व भ० चन्द्र प्रभ का पूर्णायु और गति भ० नमि नाथ , , " " भ० धर्म नाथ , " " " Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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