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________________ ४३८ श्रु०१ अ०५ ज्ञाता०-सूची ४८ दोनों मित्रों द्वारा मयूरी के दोनों अण्डों को उठाना ४६ क- मुर्गी के अण्डों के साथ वन मयूरी के अण्डों का पालन ख- सागरदत्त की अण्डे के सम्बन्ध में शंका. अण्डे का नष्ट होना क- जिनदत्त का अण्डे के सम्बन्ध में संदेह न करना ख- मयूरपालक द्वारा नृत्य तथा द्यूत क्रीड़ा शिक्षा घ- निग्रंथ निग्रंथियों को भ० महावीर की सिम्यक्त्व के प्रथम शंका अतिचार की निवृत्ति के सम्बन्ध में शिक्षा चतुर्थ कूर्म अध्ययन इन्द्रिय जय . ५१ क- उत्थानिका-वाराणसी नगरी ख- मालुका कच्छ में दो शृगाल ग- संध्या के समय द्रह से निकलकर दो कूर्मों का. खाद्य-गवेषणा के लिए मालुका कच्छ की ओर जाना घ- शृगालों का कूर्मों की घात में बैठना ङ- चंचल चित्त कूर्म का शृगाल द्वारा मारा जाना च- स्थिरचित्त कूर्म का बचना छ- निग्रंथ निर्गथियों को भ० महावीर की [पाँचों इन्द्रियों को वश करने के सम्बन्ध में] शिक्षा पंचम ज्ञात अध्ययन प्रमाद परिहार ५२ क- द्वारका नगरी वर्णन. रैवतक पर्वत. नंदनवन उद्यान वर्णन सुरप्रिय यक्षायतन कृष्ण वासुदेव दक्षिणार्धभरत की राजधानी द्वारिका का वैभव समुद्र विजय प्रमुख दश दशार बलदेव " पाँच महावीर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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