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________________ ४८७ वर्ग ३ अ०८ अन्तकृद्दशा-सूची ग- भ० अरिपनेमी का समवसरण. प्रवचन. कुमार को वैराग्य. प्रव्रज्या-चौदहपूर्व का अध्ययन. बीस वर्ष का श्रमण जीवन. शत्रुञ्जय पर्वत पर अन्तिम साधना. एक मास की संलेखना. सिद्ध पद की प्राप्ति. उपसंहार. घ- द्वितीय अनन्तसेन अध्ययन तृतीय अनिहत चतुर्थ देवय। षष्ठ शत्रुञ्जय सप्तम सारण ५ क- द्वारिका नगरी. वसुदेव राजा. सारण कुमार. पचास कन्याओं से एक साथ पाणिग्रहण. दहेज. चौदह पूर्व का अध्ययन. बीस वर्ष का श्रमण पर्याय. शत्रुञ्जय पर्वत पर अन्तिम आराधना. सिद्ध पद की प्राप्ति विदु पंचम अष्टम गजसुकुमार अध्यन ६. क- उत्थानिका-द्वारिका. भ० अरिपनेमी का समवसरण. अतेवासी ६ अणगार. यावज्जीवन छट्ठ छ8 करने की प्रतिज्ञा. सहस्राम्रवन से तीन संघाटकों का भिक्षा के लिए गमन (दो श्रमणों का एक संघाटक) तीनों संघाटकों का क्रमशः देव की महारानी के यहाँ जाना. देवकी महारानी के संदेह की निवृत्ति. भ० अरिषनेमी की वंदना के लिये देवकी महारानी का जाना. ख- पोलासपुर में कही हुई अतिमुक्त मुनि की भविष्यवाणी के प्रति ___ महारानी का संदेह. ग- भ० अरिष्टनेमी द्वारा संदेह का निवारण घ- मृतवत्सा सुलषा भार्या का हरिण गवेषी देवाराधना का कथन. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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