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स्थानांग-सूची
१८४ श्रु०१, अ०८, उ०१ सूत्र ६१३
ग- आलोचना करने वाला आराधक
आलोचना न करने वाला विराधक घ- आराधक और विराधक की गति में अन्तर ५६८ क- आठ संवर
ख- आठ असंवर ५९६ आठ स्पर्श
आठ प्रकार की लोक स्थिति ,, ,, गणि-संपदा प्रत्येक महानिधि की ऊंचाई
आठ समिति ६०४ क- आलोचना (प्रायश्चित्त) सुनने योग्य अणगार के आठ गुण
ख- आत्म दोषों की आलोचना करनेवाले ,, , , ,, ६०५ आठ प्रकार का प्रायश्चित्त
आठ मद स्थान . आठ अक्रियावादी
आठ प्रकार का निमित्त ६०६
आठ प्रकार की वचन विभक्ति ६१० क- असर्वज्ञ आठ स्थानों को पूर्णरूप से नहीं जानता
ख- सर्वज्ञ आठ स्थानों को पूर्णरूप से जानता है ६११ आठ प्रकार का आयुर्वेद
क- शकेन्द्र की आठ अग्र महिषियां ख- ईशानेन्द्र ,, ,, , ग- शकेन्द्र के सोम लोकपाल की आठ अग्रमहिषियां घ- ईशानेन्द्र के वैश्रमण , , , "
ङ- ग्रह-आठ महाग्रह ६१३ आठ प्रकार की तृण वनस्पतिकाय
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