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________________ राज प्र० सूची १० ५४८ सूत्र १०-१६. आभियोगिक देव का वैक्रेय समुद्घात करना, सफाई करने के लिये तैयार होना ११ क- संवर्तक वायु की विकुर्वणा- रचना. एक तरुण कुशल व्यक्ति के समान संवर्तक वायु द्वारा कचरे की सफाई होना ख- अभ्र, मेघ की रचना, एक योजन प्रदेश का सिंचन ग- पुष्प बादल की रचना. एक योजन में पुष्पवर्षा. घ- एक योजन के क्षेत्र को विविध प्रकार के धूपों से सुवासित करना ङ - भगवान् को वन्दना करके आभियोगिक देव का स्वस्थान जाना और सूर्याभ देव को सविनय सफाईकार्य से अवगत करना १२ क- सूर्याभ देव का पैदल सेनाध्यक्ष को बुलाना ख- आमलकल्पना चलने के लिये सभी देवों को शीघ्र उपस्थित होने की सुघोषा घंटा द्वारा सूचना दिलवाना. १३ क- पैदल सेनाध्यक्ष का सुघोषा घंटा वादन १४ ख- सभी देव देवियों को भगवद् वन्दना के लिये आह्वाहन सुसज्जित देव देवियों का सूर्याभ के सामने उपस्थित होना १५ आभियोगिक देव को दिव्य यानविमान की रचना का आदेश १६ क - दिव्य यानविमान की रचना का विस्तृत वर्णन ( शिल्प वर्णन ) ख- आठ मंगलों के नाम ग- विविध चर्मों के स्पर्श से विमान के स्पर्श की तुलना घ- भित्तिचित्रों का परिचय ङ - कृष्ण वर्ण के विविध पदार्थों से कृष्ण मणियों की तुलना च - नील वर्ण के अनेक पदार्थों से नील मणियों की तुलना छ- रक्तवर्ण के नानाविध द्रव्यों से लोहित मणियों की तुलना ज - पीत वर्ण के प्रशस्त पदार्थों से हारिद्र मणियों की तुलना झ - शुक्ल वर्ण के स्वच्छ द्रव्यों से श्वेत मणियों की तुलना ञ - सुगंधित द्रव्यों से मणियों के गन्ध की तुलना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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