________________
सूत्र १७-१८
५४६
राज प्र० सूची
ट - अति मृदु स्पर्शवाले पदार्थों से मणियों के स्पर्श की समानता. ठ- विमान के मध्य में प्रेक्षावर मंडप की रचना
[विशाल वास्तु शिल्प का अंकन ]
ड- प्रेक्षाघर मंडप के मध्य में अखाड़े का निर्माण
ढ - चार योजन की मणिपीठिका का निर्माण
ण - सिंहासन की रचना [ शिल्प कला ]
त- विजय वस्त्र का विन्यास
थ- वज्रमय अंकुश और मुक्तामाला की रचना
द- उत्तर-पूर्व में [ ईशान कोण ] में सामानिक देवों के सिंहासन पूर्व में अग्र महीषियों के भद्रासन
दक्षिण - पूर्व में आभ्यन्तर परिषद के आठ हजार भद्रासन. दक्षिण में मध्यम परिषद के दस हजार भद्रासन
दक्षिण-पश्चिम में बाह्य परिषद के बारह हजार भद्रासन पश्चिम में सात सेनापतियों के सात भद्रासन
चारों दिशाओं में आत्मरक्षक देवों के सोलह हजार भद्रासन
[ प्रत्येक दिशा में चार-चार हजार भद्रासन ]
ध विमान के वर्ण गन्ध की उपमा.
न- आभियोगिक देव द्वारा विमान की तैयारी की सूर्याभदेव को
सूचना
१७ क- गंधर्व और नर्तकों के साथ सूर्याभ का विमान में प्रवेश. ख- देव परिवार का यथास्थान बैठना
ग- विमान के आगे अष्ट मंगल, दण्ड, महेन्द्र, ध्वज, पांच सेनापतियों के विमानों और आभियोगिक देवियों के विमान का चलना
१८ - सौधर्मकल्प के उत्तर के निर्याण मार्ग से सूर्याभ का प्रस्थान
ख- विमान की उत्कृष्ट गति
ग- नंदीश्वर द्वीप के रतिकर पर्वत पर दिव्य ऋद्धि को संक्षिप्त
करना
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org