________________
श्रु०२, अ०१६ उ०१ गाथा १२
२
३
४-८
ε
१०
११
१२
417******
मुनि को हाथी की उपमा
मुनि को पर्वत की उपमा
मुनि के कर्ममल को रौप्यमल की उपमा दुःख शय्या को सर्प कंचुक की उपमा
संसार को समुद्र की उपमा
अन्तकृत् मुनि मोक्षगामी मुनि
६१
XXXXXXXIOMNET**************.XOQUERZAXXRANGRYZEL
Jain Education International
आचारांग - सूची
तमेव सच्च णीसंकं जं जिणेहिं पवेइयं
For Private & Personal Use Only
********HCHUIP
www.jainelibrary.org