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________________ श्रु०१ अ०१६ ४५५ ज्ञाता०-सूची ग- नारद का पद्मनाभ के अतःपुर में प्रवेश घ- अपने अन्तःपुर के सम्बन्ध में पद्मनाभ की जिज्ञासा ङ- नारद ने पद्मनाभ को कूपमण्डूक की उपमा दी च- द्रौपदी के रूप की महिमा. मित्रदेव द्वारा सुप्त युधिष्ठिर के समीप से द्रौपदी का साहरण छ- राजकन्याओं के साथ द्रौपदी की तप-आराधना १२४ क- जागृत युधिष्ठिर द्वारा द्रौपदी की शोध ख- द्रौपदी की शोध के लिये कुंती की श्री कृष्ण से प्रार्थना ग- श्री कृष्ण का आश्वासन घ- कच्छुल्ल नारद का आगमन श्री कृष्ण को द्रौपदी का पता देना ङ- पाण्डवों को ससैन्य पूर्व वैताली समुद्रतट पाने का आदेश च- श्री कृष्ण का ससैन्य पूर्व वैताली पहुंचना छ- श्री कृष्ण का अष्टमभक्त तप. सुस्थित देव का आगमन ज- श्री कृष्ण और पाण्डवों के रथों का अमरकंका पहुँचना छ- पद्मनाभ को सूचना देने के लिये दारुक दूत को भेजना ञ- पद्मनाभ के साथ पाण्डवों का युद्ध ट- श्री कृष्ण का शंखनाद, धनुषटंकार. पद्मनाभ का आत्म समर्पण ठ- पाण्डवों और द्रौपदी को साथ लेकर श्रीकृष्ण का भारत की और प्रयाण १२५ क- धातकीखण्ड द्वीप का पूर्वार्ध. भरत क्षेत्र. चंपानगरी. पूर्ण भद्र चैत्य ख- कपिल वासुदेव ग- भ० मुनिसुव्रत का समवसरण. धर्म श्रवण करते समय शंख नाद श्रवण से कपिल वासुदेव के मन में उत्पन्न जिज्ञासा का" भ० मुनिसुव्रत द्वारा समाधान घ- एक क्षेत्र में एक साथ दो अरिहंत, चक्रवर्ती, बलदेव और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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