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________________ प्रज्ञापना-सूची पद २ सूत्र १५-२३ ख- उत्पत्ति की अपेक्षा पर्याप्त-अपर्याप्त द्वीन्द्रियों के स्थान ग- समुद्घात की अपेक्षा घ. स्वस्थान की अपेक्षा १५ तीन लोक में पर्याप्त-अपर्याप्त त्रीन्द्रियों के स्थान शेष सूत्र १४ के समान तीन लोक में पर्याप्त-अपर्याप्त चतुरिन्द्रियों के स्थान शेष सूत्र १४ के समान तीन लोक में पर्याप्त-अपर्याप्त पंचेन्द्रियों के स्थान शेष सूत्र १४ के समान नैरयिकों के स्थान १८ क- सात पृथ्वियों में पर्याप्त-अपर्याप्त नैरथिकों के स्थान ख- नैरयिकों के नरकावास ग- नरकावासों की रचमा घ- उत्पत्ति की अपेक्षा पर्याप्त अपर्याप्त नैरयिकों के स्थान ङ- समुद्घात की अपेक्षा अपर्याप्त नैरयिकों के स्थान च- स्वस्थान की अपेक्षा छ- नै रयिकों का वर्णन १६ क- रत्नप्रभा में पर्याप्त-अपर्याप्त नै रयिकों के स्थान ख- " में नरकावास । शेष सूत्र १८ के समान क- शर्कराप्रभा में पर्याप्त-अपर्याप्त नैरयिकों के स्थान ख- " में नरकावास । शेष सूत्र १८ के समान २१ क- बालुका प्रभा का प्रभा में पर्याप्त-अपर्याप्त नै रयिकों के स्थान " में नरकाबास । शेष सूत्र १८ के समान २२ क- पंकप्रभा में पर्याप्त-अपर्याप्त नै रयिकों के स्थान ख- " में नरकावास । शेष सूत्र १८ के समान २३ क- धूमप्रभा में पर्याप्त नैरथिकों के स्थान Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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