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________________ सूत्र २१८-२२६ जीवाभिगम-सूची २१८ वैमानिक देवों की वेषभूषा २१६ वैमानिक देवों के काम भोग २२० क- वैमानिक देवों की भिन्न २ स्थिति " गति २२१ सर्व विमानों में षटकाय रूप में सर्वजीवों की उत्पति २२२ क- सर्व नै रयिकों की जघन्य उत्कृष्ट स्थिति ख- सर्व तिर्यंचों की ग- सर्व मनुष्यों की " घ- सर्व देवों की " ङ- नैरयिकों का जघन्य उत्कृष्ट संस्थिति काल च- तिर्यचों का " छ- मनुष्यों का " ज- देवों का " झ- नैरयिक, मनुष्य और देवों का जघन्य उत्कृष्ट अन्तर काल अ- तिर्यंचों का जघन्य उत्कृष्ट अन्तर काल नैरयिक, तिर्यंच, मनुष्य और देवों का अल्प-बहुत्व चतुर्थ पंचविध जीव प्रतिपत्ति २२४ क- संसार स्थित जीव पाँच प्रकार के ख- एकेन्द्रिय-यावत्-पंचेन्द्रिय दो-दो प्रकार के ग- एकेन्द्रिय-यावत्-पंचेन्द्रियों की जघन्य उत्कृष्ट स्थिति घ- एकेन्द्रिय-यावत-पंचेन्द्रियों का भिन्न २ जघन्य उत्कृष्ट संस्थिति काल ङ- एकेन्द्रिय-यावत्-पंचेन्द्रियों का भिन्न २ जघन्य उत्कृष्ट अन्तर काल २२५ एकेन्द्रिय-यावत-पंचेन्द्रियों का अल्प-बहुत्व २२६ क- संसार स्थित जीव ६ प्रकार के २२३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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