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________________ जीवाभिगम-सूची सूत्र २११-२१७ २११ सौधर्म-यावत्-अनुत्तर विमानों की भिन्न भिन्न संस्थान २१२ सौधर्म-यावत्-अनुत्तर विमानों के भिन्न भिन्न ऊँचाई २१३ क- सौधर्म-यावत्-अनुत्तर विमानों का भिन्न भिन्न आयाम-विष्कम्भ और परिधि ख- सौधर्म-यावत्-अनुत्तर विमानों के भिन्न-भिन्न वर्ण, प्रभा, गन्ध और स्पर्श ग- सर्व विमानों की पौद्गलिक रचना घ. सर्व विमानों में जीवों और पुद्गलों का चयोपचय ङ- सर्व विमानों की नित्यता च- सर्व विमानों में जीवों की उत्पत्ति का भिन्न भिन्न क्रम छ- सर्व विमानों का जीवों से सर्वथा रिक्त न होना ज- सौधर्म-यावत्-अनुत्तर देवों की भिन्न २ अवगाहना-शरीरमान झ- ग्रेवेयक और अनुत्तर देवों का वैकेय न करना २१४ क- सौधर्म-यावत-अनुत्तर देवों के संघयण का अभाव-पुद्गलों का शुभ परिणमन ख- सौधर्म-यावत्-अनुत्तर देवों का संस्थान २१५ क- सौधर्म-यावत्-अनुत्तर देवों के शरीररों का भिन्न २ वर्ण, गंघ, स्पर्श ख- वैमानिक देवों के श्वासोच्छ्वास के पुद्गल " आहार के पुद्गल घ- वैमानिक देवों के लेश्या-यावत्-उपयोग द्वार २१६ वैमानिक देवों के अवधिज्ञान की भिन्न-भिन्न अवधि २१७ क- वैमानिक देवों के भिन्न २ समुद्घात ख- वैमानिक देवों में सूधा-पिपासा की वेदन का अभाव ग- वैमानिक-देवों की भिन्न २ प्रकार की वैक्रिय शक्ति घ- वैमानिक देवों का साता वेदन। ङ- वैमानिक देवों की उत्तरोत्तर महर्षी Jain Education International, For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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