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________________ प्राभृत १३ सूत्र ७६ ७३६ सूर्यप्रज्ञप्ति-सूची ६८ पाँच संवत्सर की अमावस्याओं चन्द्र-सूर्य के साथ नक्षत्रों का योग ७१ जिस क्षेत्र में चंद्र-सूर्य के साथ नक्षत्रों का योग हो उसी क्षेत्र में पुन: चंद्र-सूर्य के साथ नक्षत्रों का योग हो तो उस काल का परिमाण ७० क- दोनों चंद्र समान नक्षत्र के साथ योग करते हैं ख- दोनों सूर्य समान नक्षत्र के साथ योग करते हैं ग- इसी प्रकार महादि का योग इग्यारहवाँ प्रामृत पाँच संवत्सरों का आदि अन्त और नक्षत्रों का योग बारहवाँ प्राभृत पाँच संवत्सरों के मुहूर्त पाँच संवत्सरों के दिन-रात पाँच संवत्सरों का आदि और अन्त ७५ क- छ ऋतुओं का प्रमाण ख- छ क्षय तिथियाँ ग- छ अधिक तिथियाँ ७६ क. एक युग में सूर्य और चन्द्र की आवृत्तियाँ ख- प्रत्येक आवृत्ति का परिमाण ७७ पाँव संवत्सरों में सूर्य और चन्द्र की आवृत्ति के समय नक्षत्रों का योग-तथा योग काल ७८ . पाँच प्रकार के योग । ख. पाँच योगों का क्षेत्र निर्देश तेरहवाँ प्राभृत ७६ कृष्ण और शुक्ल पक्ष में चन्द्र की हानि-वृद्धि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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