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स्थानांग-सूची
१५० श्रु०१, अ०४, उ०३ सूत्र ३१३ सिद्धालय के द्वारों के आगे चार मुख्य मंडप, चार प्रेक्षा मंडप, चार अखाड़े, चार मणिपीठिका, चार सिंहासन, चार विजय, दूष्य, चार वज्रमय अंकुश, चार चैत्य स्तूप, चार जिन प्रतिमा, चार चैत्य वृक्ष, चार महेन्द्र ध्वज, चार नंदा पुष्करिणियां, पुष्करिणियों का परिमाण, चार सोपान, चार तोरण, चार वनखंड, चार दधिमुखपर्वत, पर्वतों की ऊंचाई
आदि
चार रतिकर पर्वत, पर्वतों की ऊंचाई आदि ईशानेन्द्र की चार अग्रमहिषियों की चार-चार राजधानियां
शक्रेन्द्र ,, , " ३०८ चार प्रकार का सत्य ३०६ आजीविक सम्प्रदाय में चार प्रकार का तप
क- चार प्रकार का संयम ख. , , , त्याग
ग- ,,, की अकिंचनता सूत्र संख्या ३३
तृतीय उद्देशक
चार प्रकार का क्रोध, क्रोधी की गति ३१२ शब्द और रूप क- चार प्रकार के पक्षी, इसी प्रकार चार प्रकार के पुरुष
विश्वास और अविश्वास ख- चार प्रकार के पुरुष
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प्रीति और अप्रीति घ- चार प्रकार के पुरुष
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परोपकार भाव
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