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उपाध्याय कविरत्न
श्री अमरचन्दजी महाराज का अभिमत
समवायांग सूत्र का प्रस्तुत संस्करण अपनी शैली का अनूठा संस्करण है । शुद्ध मूल पाठ, मूलस्पर्शी हिन्दी अनुवाद और विभिन्न परिशिष्ट - ऐसा लगता है, समवाय का विचार मन्थन काफी उत्कृष्ट स्थिति पर पहुंच गया है ।
यह संस्करण जहाँ सर्व साधारण आगम-स्वाध्यायी सज्जनों के लिए उपयोगी है, वहाँ आधुनिक शोधदृष्टि के विवेचक विद्वानों के लिए भी परमोपयोगी है । आगमों के तुलनात्मक अध्ययन की दिशा में यह कदम चिरस्मरणीय रहेगा ।
सम्पादक मुनिश्री कन्हैयालालजी 'कमल' मेरे चिर परिचित स्नेही मुनि हैं । उनकी आगम अध्ययन के प्रति सहज अभिरुचि का और संपादन शैली की नई दृष्टि का मैं प्रारम्भ से ही प्रशंसक रहा हूं साम्प्रदायिक दुराग्रह से उन्मुक्त रहकर सत्य का सत्य के रूप में समादर क्रना लेखन की सर्व प्रथम अपेक्षा है, और इस अपेक्षा की पूर्ति से मुनि श्री को प्रस्तुत संकरण में उल्लेखनीय सफलता मिली है । अस्वस्थ स्थिति में सांगोपांग अवलोकन नहीं करपाया हूं, यत्र तत्र विहंगम दृष्टि-निक्षेप ही हुआ है, फिरभी जो देखा गया है, तदर्थ संपादक मुनि श्री को शत शत साधुवाद |
- उपाध्याय अमर मुनि
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