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________________ श्रु०२, अ०५७०१ सू० १४४ ४७ झ ञ १४० सूत्र संख्या १४१ क ख ग घ १४२ १४३ क ख ho च ज १४४ क स्पर्श के पश्चात् सावद्य निरवद्य ख "3 विवेक पूर्वक बोलने का उपदेश " " चार चद्दर का परिमाण वस्त्र के लिये अर्ध योजन से अधिक जाने का निषेध एक स्वधर्मी के उद्देश्य से बनाया या बनवाया हुआ कपड़ा लेने का निषेध अनेक स्वधर्मियों के उद्देश्य से ग एक स्वधर्मनी के घ अनेक स्वधर्मनियों के 37 पंचम वस्त्रैषणा अध्ययन प्रथम वस्त्र ग्रहण विधि उद्देशक 33 31 छह प्रकार के वस्त्र निग्रंथ के लिए एक वस्त्र का विधान निर्ग्रथी के लिए चार चद्दर का विधान " Jain Education International 27 23 "" #1 आचारांग सूची न करना करना 37 17 श्रमणादि को गिनकर उनके निमित्त बनाया या बनवाया हुआ कपड़ा लेने का निषेध For Private & Personal Use Only 17 पुरुषान्तरकृत आदि होने पर लेने का विधान श्रमण समूह के लिए बनाया या बनवाया हुआ कपड़ा लेने का निषेध पुरुषान्तरकृत आदि होनेपर लेने का विधान भिक्षु के निमित्त क्रीत, धौत आदि दोष सहित वस्त्र लेने का निषेध पुरुषान्तरकृत आदि होनेपर लेने का विधान www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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