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________________ समवाय २ २०५ ८ असंख्य वर्षों की आयुवाले मनुष्यों की स्थिति 2 व्यंतर देवों की उत्कृष्ट स्थिति १० ज्योतिषी देवों की उत्कृष्ट स्थिति ११ सौधर्मकल्प के देवों की जघन्य स्थिति १२ सौधर्म कल्प के देवों की स्थिति १३ ईशान कल्प के देवों की जघन्य स्थिति १४ ईशान कल्प के देवों की स्थिति १५ सागर आदि देवों की स्थिति १ सागर आदि देवों का श्वासोच्छ्वास काल १ सागर आदि देवों का आहारेच्छा काल १ कुछ भवसिद्धिकों की एक भवसे मुक्ति सूत्रसंख्या ४३ द्वितीय समवाय १ दंड २ राशि ३ बंधन १ पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र के तारे २ उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के तारे ३ पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र के तारे ४ उत्तराभाद्रपद नक्षत्र के तारे १ रत्नप्रभा के कुछ नैरयिकों की स्थिति २ शर्कराप्रभा के कुछ नैरयिकों की स्थिति ३ कुछ असुरकुमारों की स्थिति ४ नागकुमार आदि की उत्कृष्ट स्थिति Jain Education International For Private & Personal Use Only समवायांग-सूची www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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