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________________ प्रवचन - प्रभावना अमूल्य प्रागम-निधि की सुरक्षा वीर - निर्वाण के पश्चात् एक हजार वर्ष की अवधि में एक-एक युग लम्बे तीन दुर्भिक्ष आये और गये । इन दुर्भिक्षों में निर्ग्रन्थ श्रमणों से आगम-वाचना, पृच्छना - परिवर्तना और अनुप्रेक्षा न हो सकी । इसलिए क्रमशः प्रत्येक दुर्भिक्ष के अन्त में पाटलीपुत्र, मथुरा और वलभी में भ० भद्रबाहु स्कंदिलाचार्य और आचार्य नागार्जुन को अध्यक्षता में आगमों की सुरक्षा के लिए श्रमण संघ ने वाचनाओं का आयोजन किया । " यहाँ तक श्रुतपरम्परा प्रचलित रही। • वीर - निर्वाण के ६८० वर्ष पश्चात् वलभी में देवधि गणि क्षमा श्रमण की अध्यक्षता में श्रमण संघ ने आगमों को लिपिबद्ध किया | 3 लिखना और पुस्तक रखना निर्ग्रन्थ श्रमण के लिए यद्यपि सर्वथा निषिद्ध था, किन्तु देवधराणि ने जब स्मृति- दौर्बल्य का स्वयं अनुभव किया तो आगमों की सुरक्षा के लिए संघ के समक्ष पुस्तक लेखन के अपवाद का नव विधान किया । आगमों के लिपिबद्ध होने के पश्चात् १४०० वर्ष की अवधि में दुष्काल के कुचक्र ने जैन संघ से अनेक आगम छीन १ (क) पाटलीपुत्र वाचना वीर निर्वाण के १६० वर्ष पश्चात् (ख) माथुरी वाचना वीर निर्वाण के ८२७ वर्ष पश्चात् (ग) वालभी वाचना माथुरी वाचना के समकाल हुई है । २ कुछ विद्वानों का मत है कि - माथुरी और वालभी वाचनाओं में आगम लिपिबद्ध हो गये थे । Jain Education International ३ वीर निर्वाण के ९९ ३ वर्ष पश्चात् वलभी में देवधि गणि ने आगम और प्रकीर्णक लिपिबद्ध करवाए। यह भी एक मान्यता है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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