SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 881
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उ० ४ सूत्र ३६ ८५३ बृहत्कल्प सूची ख- इसी प्रकार गणावच्छेदक ग- इसी प्रकार आचार्य उपाध्याय अन्य गण का अध्यापन २१-२३ क- भिक्षु अथवा भिक्षुणी अन्यगण के आचार्य-उपाध्याय को [प्रवर्तिनी आदि को] अध्यापन कराना चाहे तो उसकी विधि ख- इसी प्रकार गणावच्छेक . ग- इसी प्रकार आचार्य उपाध्याय २४ मृत साधु सम्बन्धी विधि कलह-उपशमन २५ क- किमी के साथ कलह होने पर क्षमा याचना से पूर्व-आहार करने का निषेध ख- किसी के साथ कसह होने हर क्षमा याचना से पूर्व-स्वाध्याय करने का निषेध ग- किसी के साथ कलह होने पर क्षमा याचना से पूर्व-शौच के लिए जाने का निषेध घ- किसी के साथ कलह होने पर क्षमा याचना से पूर्व-विहार करने का निषेध ङ- प्रायश्चित्त के लिये अन्यत्र जाने की विधि वैयावृत्य-विधि परिहार विशुद्ध चारित्र-तप-करने वाले की सेवा विधि इर्या समिति-नदी पार करने की मर्यादा पांच महानदियों को पार करने की विधि व मर्यादा संघ व्यवस्था २८-३६ तृणकुटी---पर्णकुटी आदि में [वर्षा, हेमन्त और ग्रीष्म ऋतु में रहने की विधि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy