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________________ ज्ञाता०-सूची ४४४ श्रु०१ अ०८ ख- अरहन्नक, श्रमणोपासक की व्यापार के लिए लवण समुद्र की यात्रा ग- जहाज में अरहन्नक की एक देव द्वारा परीक्षा तथा दृढ़ अरहन्नक को दो दिव्य कुण्डल युगलों की भेंट ७० क- अरहन्नक का मिथिला गमन ख- महाराजा कुम्भ को बहुमूल्य पदार्थों की तथा दिव्य कुण्डल युगल की भेंट ग- अरहन्नक का चम्पा में प्रत्यागमन. महाराज चन्द्रच्छाय को एक दिव्य कुण्डल की भेंट घ- मल्ली विदेहराजकन्या के सम्बन्ध में अरहन्तक का निवेदन ङ- मल्ली विदेहराजकन्या की याचना के लिये महाराज चन्द्र च्छाय का दूत सम्प्रेषण ७१ क- कुणाल जनपद. सावत्थी नगरी. रुक्मी राजा. धारिणी. सुबाहु नाम की राज कन्या ख- सुबाहु राज कन्या का चातुर्मासिक स्नान महोत्सव ग- वर्षधर द्वारा मल्ली विदेहराज कन्या की महिमा घ- मल्ली विदेहराजकन्या की याचना के लिये रुक्मी राजा का मिथिला को दूत भेजना ७२ क- काशी जनपद. वाराणसी नगरी. शंख राजा ख- मल्ली विदेहराजकन्या के दिव्य कुण्डल का संधिभेद ग- कुण्डल की संघी को ठीक करने के लिए महाराजा कुंभ का स्वर्णकारों को आदेश घ- कुण्डल की भग्न संधि को ठीक करने में असमर्थ सभी स्वर्णकारों को निर्वासित करना ङ- निर्वासित स्वर्णकारों का वाराणसी निवास . च- मल्ली विदेहराजकन्या के सम्बन्ध में काशी राज की जानकारी छ- मल्ली विदेहराजकन्या की याचना के लिये काशी राज का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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