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________________ प्राभृत १६ सूत्र १०३ ६८ ७४२ ख- चन्द्र - विमान के ग. सूर्यं विमान के घ- ग्रह विमान के देव - देवियों की जघन्य - उत्कृष्ट स्थिति देव - देवियों की जघन्य - उत्कृष्ट स्थिति देव - देवियों की जघन्य - उत्कृष्ट स्थिति च - तारा विमान के देव - देवियों की जघन्य - उत्कृष्ट स्थिति पाँच ज्योतिषी देवों का अल्प- बहुत्व उन्नीसवाँ प्राभृत ६६ क- चन्द्र-सूर्य सारे लोक को प्रकाशित करते हैं या लोक के विभाग को इस सम्बन्ध में अन्य बारह प्रतिप्रत्तियाँ निरूपण सूर्यप्रज्ञप्ति सूची - ख- स्वमत का सम्यक् ग- लवण समुद्र का संस्थान, आयाम विष्कम्भ और परिधि घ- लवण समुद्र में चन्द्र-सूर्य ग्रह, नक्षत्र और तारे ङ - धातकी खण्ड का संस्थान, आयाम, विष्कम्भ, और परिधि च - धातकी खण्ड में चन्द्र सूर्य ग्रह नक्षत्र और तारे छ- कालोद का संस्थान, आयाम, विष्कम्भ और परिधि ज- कालोद में चन्द्र-सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारे भ- पुष्कर द्वीप का संस्थान आयाम - विष्कम्भ और परिधि ञ - पुष्कर द्वीप में चन्द्र, सूर्य, ग्रह नक्षत्र और तारे ट- पुष्करार्ध का संस्थान, आयाम, विष्कम्भ और परिधि ठ- पुष्करार्ध में, चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारे ड- मनुष्य क्षेत्र के चन्द्र आदि की उत्पत्ति और गति ढ - इन्द्र के अभाव में व्यवस्था, इन्द्र का जघन्य उत्कृष्ट विरह काल ण - मनुष्य क्षेत्र के बाहर चन्द्र आदि की उत्पत्ति और गति त - ढके समान Jain Education International १००.१०३ पुष्करोद का संस्थान, आयाम - विष्कम्भ और परिधि ख- पुष्करोद में चन्द्रादि ग- स्वयम्भूरमण पर्यन्त द्वीप समुद्रों का आयाम - विष्कम्भ और परिधि For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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