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________________ सूर्यप्रज्ञप्ति-सूची ७४१ प्राभृत १८ सूत्र ६७ अठारहवाँ प्राभृत ८६ क- भूमि से चन्द्र सूर्यादि की ऊँचाई का परिमाण । इस सम्बन्ध में अन्य पच्चीस प्रतिपत्तियाँ ख- स्वमत का यथार्थ प्रतिपादन ग- ज्योतिषी देवों की एक-दूसरे से दूरी का अन्तर ६० क- चन्द्र सूर्य के विमान के नीचे ऊपर और सम विभाग में ताराओं के विमान ख- नीचे, ऊपर और समविभाग में ताराविमानों के होने का हेतु ६१ एक चन्द्र का ग्रह, नक्षत्र और ताराओं का परिवार ६२ क- मेरु पर्वत से ज्योतिषचक्र का अन्तर ख- लोकान्त से ज्योतिषचक्र का अन्तर जम्बुद्वीप में सर्वाभ्यन्तर, सर्वबाह्य, सर्वोपरि और सबसे नीचे चलने वाले नक्षत्र ६४ क- चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और ताराओं के विमानों के संस्थान ख- चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और ताराओं के विमानों का आयाम विष्कम्भ और बाहल्य ग- चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारा विमानों का वहन करनेवाले देवों की संख्या और उनका दिशाक्रम से रूप घ- पाँच ज्योतिष्क देवों में शीघ्र या मन्द गति __ङ- पाँच ज्योतिष्क देवों का गति की अपेक्षा से अल्प-बहुत्व जम्बूद्वीप में एक तारा विमान से दूसरे तारा विमान का जघन्य उत्कृष्ट अन्तर ६६ क- चन्द्र की अग्रमहीषियाँ, प्रत्येक अग्रमहीषी का परिवार प्रत्येक अग्रमहीषी की विकुर्वणा शक्ति, चन्द्रावतंसक विमान की सुधर्मा सभा में जिन अस्थियों का सम्मान ख- सूर्य की अग्रमहीषियाँ आदि चन्द्र वर्णन के समान ६७ क- ज्योतिषी देव-देवियों की जघन्य- उत्कृष्ट स्थिति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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