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________________ जीवाभिगम-सूची ५८० सूची ७३-७९. ट- " ब तनुवात का , अवकाशान्तर का , ७३ सात नरकों और उनके अवकाशान्तरों में पुद्गल द्रव्यों की व्यापक स्थिति ७४ क- सात नरकों से चारों दिशाओं में लोकान्त का अन्तर ७५ क- सात नरकों के संस्थान ख- सातों नरकों के चारों दिशाओं में चरमान्त तीन तीन प्रकार के ७६ क- सात नरकों के घनोदधिवलय का बाहल्य ख- धनवातवलय का , ग. ततुवातवलय का , घ- सात नरकों के घनोदधिवलयों पुद्गल द्रव्यों की व्यापक स्थिति ङ- सात नरकों के घनवातवलयों में पुद्गल द्रव्यों की व्यापकता तनुवात वलयों में घनोदधि वलयों का संस्थान घनवात वलयों का तनवात वलयों का ,, का आयाम-विष्कम्भ का सर्वत्र समान बाहल्य ওও सात नरकों में सर्व जीवों के उत्पन्न होने का प्रश्नोत्तर ख- " से " निकलने का " में सर्व पुद्गलों के प्रविष्ट होने का " घ- " से " निकलने का ७८ क- सात नरकों की सास्वत अशास्वत सिद्धि का हेतु ख- सात नरकों की नित्यता ७६ क- प्रत्येक नरक के ऊपर के चरमान्त से नीचे के चरमान्त का अन्तर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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