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________________ राज प्र० सूची ५६२ सूत्र ६८-७२ ख- केशी कुमार श्रमण की ओर से खाली और हवा से भरी हुई मशक के तोलने का उदाहरण ६८ क - राजा प्रदेशी की ओर से चोर के छोटे-छोटे टुकड़े करके जीव को देखने के लिये किए गये प्रयत्न का उदाहरण ख- केशी कुमारभ्रमण की ओर से अरणी काष्ठ को खण्ड-खण्ड़ करके अग्नि देखने के लिये प्रयत्न करने वाले कठियारे का उदाहरण ६६ क - केशी कुमार श्रमण द्वारा कहे गये कठोर वचनों की युक्तता के सम्बन्ध में प्रदेशी का प्रश्न ख- केशी कुमार श्रमण द्वारा चार परिषदाओं और उनके अपराधियों के दण्ड-विधान का ज्ञापन. ग- चार प्रकार के व्यवहारियों का प्ररूपण. राजा प्रदेशी की व्यवहारिकता. ७० क- जीव को कर कंकणवत् प्रत्यक्ष दिखाने के लिये प्रदेशी की केशी कुमारश्रमण से प्रार्थना ख- राजो प्रदेशी से वायु को हस्तामलकवत् दिखाने के लिये केशी कुमारश्रमण का कथन ग- सवर्श के लिये दस स्थानों की पूर्ण जानकारी की शक्यता और सर्वज्ञ के लिये अशक्यता का कथन ७१ क- हाथी और कुथुवे का जीव समान होने के संबंध में प्रदेशी का प्रश्न ख- आवरणानुसार दीपक के प्रकाश का संकोच विकाश होने के समान हाथी और कुंथुवे के जीव की समानता का केशी श्रमण द्वारा प्रतिपादन ७२ क- प्रदेशी का परंम्परागत मान्यता से मोह ख- केशी कुमारभ्रमण द्वारा प्रतिपादित लोह वाणिये के रूपक से मोह का निवारण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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