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________________ सूत्र ११३-१२१ ५८९ . जीवाभिगम-सूची छ- , अश्वकर्ण द्वीप का स्थान आदि ज- , उल्कामुख " झ- , घनदंत अ- आदर्श मुख आदि द्वीपों का अवग्रह, विष्कम्भ, परिधि आदि ट- उत्तर के एकोरुक द्वीप आदि द्वीपों का वर्णन ११३ क- अकर्मभूमि मनुष्य तीस प्रकार के हैं ख- कर्मभूमि मनुष्य पन्द्रह प्रकार के हैं देवयोनिक जीव ११४ चार प्रकार के देव भवनवासी-यावत्-अनुत्तरविमानवासी देवों के भेद ११६ भवनवासी देवों के भवनों का स्थान ११७ दक्षिण के असुरकुमारों के भवनों का वर्णन १८ क- असुरेन्द्र की तीन परिषद ख-घ- तीन परिषदों के देवों की संख्या ङ-छ- तीन परिषदों की देवियों की संख्या ज-ड- तान परिषद के देव-देवियों की स्थिति ढ-ण- तीन परिषद की भिन्नता का हेतु ११६ क- उत्तर के असुरकुमारों का वर्णन ख- वैरोचनेन्द्र की तीन परिषद ग- तीन परिषद के देव देवियों की संख्या घ. वैरोचनेन्द्र की और तीन परिषद् के देव-देवियों की स्थिति १२० क- दक्षिण उत्तर के नाग कुमारेन्द्र व उनकी तीन परिषद के देव-देवियों का वर्णन ख- शेष दक्षिण-उत्तर के भवनेन्द्रों व उनकी तीन परिषद के देव देवियों का वर्णन १२१ व्यन्तर देवों के भवन, इन्द्र और परिषदों का वर्णन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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