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________________ देता है । यथा- भगवान महावीर और गौतम का संवाद । केशी गौतम का संवाद । राजा प्रदेशी और केशी मुनि का संवाद । राजा श्रेणिक और अनाथी निग्रंथ का संवाद आदि । २ वर्णनात्मक शैलोकिसी श्रमण या श्रमणी तथा श्रमणोपासक या श्रमणोपासिका के जीवन का वर्णन । यथा-दस उपासकों का तथा अन्तकृत आत्माओं का वर्णन अथवा ऐसे अन्य सभी वर्णन । ३ उपदेशात्मक शैलीसाधक या साधिका को किसी प्रकार का उपदेश देना । यथा जरा जाव न पीडेइ, वाही जाव न वड्ढइ । जाविदिया न हायंति, ताव धम्म समायरे ॥ ४ विधि-निषेधात्मक शैली साधक के लिए किसी प्रकार का विधान या निषेध करना । यथाकप्पइ निग्गंथाणं आउंचण-पट्टगं धारेत्तए वा, परिहरित्तए वा । नो कप्पई निग्गंथीणं आउंचण-पट्टगं धारेत्तए वा, परिहरित्तए वा। जैनागमों के प्रमुख विषय१ आचार-सम्बन्धी विधि-निषेध । २ आचार-सम्बन्धी उपदेश । ३ आचार-सम्बन्धी औसगिक और आपवादिक नियमों का विधान । ४ प्रायश्चित्त विधान । ५ भूगोल-खगोल वर्णन । ६ तत्त्व-निरूपण। ७ जैनधर्मानुयायी साधकों के जीवन । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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