SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 499
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अ०१ सू० ६२ ४७१ उपासक दशा-सूची cK W ४५ प्रथम अणुव्रत के पांच अतिचार द्वितीय अणव्रत के पांच अतिचार तृतीय अणुव्रत के पांच अतिचार चतुर्थ अणुव्रत के पांच अतिचार पंचम अव्रणुत के पांच अतिचार षष्ठ दिग्वत के पांच अतिचार ५१ क- सप्तम उपभोग-परिभोग व्रत के पांच अतिचार ख- पन्द्रह कर्मादान अष्टम अनर्थदण्ड व्रत के पांच अतिचार नवम सामायिक व्रत के पांच अतिचार दशम देशावकासिक व्रत के पांच अतिचार एकादशम पोषध व्रत के पांच अतिचार द्वादशम यथासंविभाग व्रत के पांच अतिचार संलेखना के पांच अतिचार क- आनन्द द्वारा द्वादश विध श्रावक धर्म की स्वीकृति ख- सम्यक्त्व ग्रहण ग- सम्यक्त्वी के ६ आगार घ- आनन्द का स्वगृह गमन ङ- स्वभार्या शिवानन्दा को द्वादशविध गृहस्थधर्म स्वीकार करने, के लिये प्रेरणा ५६ भ० महावीर के दर्शनार्थ शिवानन्दा का जाना भ० महावीर की धर्मकथा शिवानन्द का व्रत ग्रहण करना क- आनन्द के सम्बन्ध में गौतम स्वामी की जिज्ञासा और भ० महावीर द्वारा समाधान ख- आनन्द का सौधर्मकल्प के अरुणाभ विमान में उत्पन्न होगा घ- वहाँ आनन्द की चार पल्य की स्थिति होगी ४. rror Ww. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy