SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 919
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उ० १, २, ६, गाथा ८६ १ प्रायश्चित्त संबंधी विशेष विवरण उद्देशक - १ प्रथम उद्देशक में निर्दिष्ट दोषों का परवश या अनुपयोग से सेवन करनेपर प्रायश्चित्त जघन्य ४ । मध्यम १५ । उत्कृष्ट ३० निर्विकृतिक । प्रथम उद्देदेशक में निर्दिष्ट दोषों का आतुरता या उपयोग पूर्वक सेवन करनेपर प्रायश्चित्त जघन्य ४ । मध्यम १५ । उकृष्ट ३० आचाम्ल । प्रथम उद्दे शक में निर्दिष्ट दोषों का मोहोदय से सेवन करने पर प्रायश्चित्त जघन्य ४ । मध्यम १५ । उत्कृष्ट ३० उपवास । निशीथ-सूची उद्देशक — २ द्वितीय उद्दे शक में निर्दिष्ट दोषों का परवश या अनुपयोग से सेवन करने पर प्रायश्चित्त जघन्य ४ । मध्यम १५ । उकृष्ट २७ एकाशन । द्वितीय उद्देशक में निर्दिष्ट दोषों का आतुरता या उपयोग पूर्वक सेवन करने पर प्रायश्चित्त जघन्य ४ । मध्यम १५ । उत्कृष्ट २७ । आचाम्ल द्वितीय उद्देशक में निर्दिष्ट दोषों का मोहोदय से सेवन करने पर प्रायश्चित्त जघन्य ४ | मध्यम १५ । उत्कृष्ट २८ । उपवास उद्देशक -- ६ छठे उद्दे शक में निर्दिष्ट दोषों का परवश या अनुपयोग से सेवन करने पर प्रायश्चित्त जघन्य ४ उपवास । मध्यम ४ षष्ठ भक्त । उत्कृष्ट १२० उपवास या चार मास का छेद । छठे उद्देशक में निर्दिष्ट से दोषों का आतुरता या उपयोग पूर्वक सेवन करने पर प्रायश्चित्त जघन्य ४ षष्ठ भक्त या चार दिन का छेद | मध्यम ४ अष्टम भक्त या ६ दिन का छेद । उत्कृष्ट १२० उपवास या चार मास का छेद । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy