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________________ उपपात-सूची १ हिंसक का उपपात-नरक में । २ असंयत का उपपात-व्यंतर देवों में ३ मुक्ति की कामना से आत्मघात करनेवालों का उपपात व्यंतर देवों मे। ४ भद्र प्रकृतिवाले मनुष्यों का उपापत-व्यंतर देवों मे। ५ विधवा या विरहिणी स्त्रियों का उपपात-व्यंतर देवों में । ६ मिताहार करने वालों का उपपात-व्यंतर देवों में । ७ वानप्रस्थ तापसों का उपपात-उत्कृष्ट ज्योतिषी देवों में । ८ कांदर्पिक श्रमणों का उपपात-उत्कृष्ट सौधर्मकल्प में। ६ परिव्राजकों का उपपात-उत्कृष्ट ब्रह्मकल्प में । १० प्रत्यनीको (अविनयी जनों) का उपपात-किल्विषिक देवों में। ११ देशविरत संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यचों का उपपात-उत्कृष्ट सहस्रारकल्प में । १२ पाजीविक मतानुयायियों का उपपात-उत्कृष्ट अच्युत__कल्प में। १३ अभिमानी (आत्मोत्कर्षक) श्रमणों का उपपात-उत्कृष्ट अच्युतकल्प में । १४ निन्हवों का उपपात-उत्कृष्ट अवेयक देवों में । १५ अल्पारंभी गृहस्थों का उपपात-उत्कृष्ट अच्युत कल्प में। १६ अनारंभी श्रमण का उपपात-सर्वार्थसिद्धविमान या सिद्ध गति । १७ सर्वकाम विरत श्रमण का उपपात-सिद्ध गति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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