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दशवैकालिक-सूची
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अ० ६ गाथा ४६ दोष-दर्शनपूर्वक पृथ्वीकाय की हिंसा का निषेध और उसका परिणाम
आठवाँ स्थान-अप्काय की यतना २६-३१ श्रमण अप्काय की हिंसा नहीं करते
दोष-दर्शनपूर्वक अप्काय की हिंसा का निषेध और उसका परिणाम
नवाँ स्थान-तेजस्काय की यतना ३२ श्रमण अग्नि की हिंसा नहीं करते ३३-३५ तेजस्काय की भयानकता का निरूपण
दोष-दर्शनपूर्वक तेजस्काय की हिंसा का निषेध और उसका निरूपण
दसवाँ स्थान----वायुकाय की यतना ३६ श्रमण वायु का समारम्भ नहीं करते ३७-३६ विभिन्न साधनों से वायु उत्पन्न करने का निषेध
दोष-दर्शनपूर्वक वायुकाय की हिंसा का निषेध और उसका परिणाम
ग्यारहवाँ स्थान-वनस्पतिकाय की यतना ४०-४२ श्रमण वनस्पतिकाय की हिंसा नहीं करते
दोष-दर्शनपूर्वक वनस्पतिकाय की हिंसा का निषेध और उसका परिणाम
बारहवां स्थान-सकाय की यतना ४३.४५ श्रमण त्रसकाय की हिंसा नहीं करते
दोष दर्शनपूर्वक त्रसकाय की हिंसा का निमेष और उसका परिणाम
तेरहवाँ स्थान--अकल्प्य ४६-४७ अकल्पनीय वस्तु लेने का निषेध ४८-४६. नित्याग्न आदि लेने से उत्पन्न होनेवाले दोष और उसका निषेध
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