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________________ दशवैकालिक-सूची ७६८ अ० ६ गाथा ४६ दोष-दर्शनपूर्वक पृथ्वीकाय की हिंसा का निषेध और उसका परिणाम आठवाँ स्थान-अप्काय की यतना २६-३१ श्रमण अप्काय की हिंसा नहीं करते दोष-दर्शनपूर्वक अप्काय की हिंसा का निषेध और उसका परिणाम नवाँ स्थान-तेजस्काय की यतना ३२ श्रमण अग्नि की हिंसा नहीं करते ३३-३५ तेजस्काय की भयानकता का निरूपण दोष-दर्शनपूर्वक तेजस्काय की हिंसा का निषेध और उसका निरूपण दसवाँ स्थान----वायुकाय की यतना ३६ श्रमण वायु का समारम्भ नहीं करते ३७-३६ विभिन्न साधनों से वायु उत्पन्न करने का निषेध दोष-दर्शनपूर्वक वायुकाय की हिंसा का निषेध और उसका परिणाम ग्यारहवाँ स्थान-वनस्पतिकाय की यतना ४०-४२ श्रमण वनस्पतिकाय की हिंसा नहीं करते दोष-दर्शनपूर्वक वनस्पतिकाय की हिंसा का निषेध और उसका परिणाम बारहवां स्थान-सकाय की यतना ४३.४५ श्रमण त्रसकाय की हिंसा नहीं करते दोष दर्शनपूर्वक त्रसकाय की हिंसा का निमेष और उसका परिणाम तेरहवाँ स्थान--अकल्प्य ४६-४७ अकल्पनीय वस्तु लेने का निषेध ४८-४६. नित्याग्न आदि लेने से उत्पन्न होनेवाले दोष और उसका निषेध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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