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श्रु०
०१, अ०६, उ० १ सूत्र ६६३ १६०
६५२
-६५३
६५४
६६१
६६२
६६३
केवली समुद्घात की स्थिति
अनुत्तर विमानों में उत्पन्न होने वाले भ० महावीर के मुनि आठ प्रकार के व्यंतर देव और उनके आठ चैत्यवृक्ष रत्नप्रभा से सूर्य विमान की ऊंचाई
३५५
६५६ चन्द्र का स्पर्श करके गति करने वाले आठ नक्षत्र -६५७ क - जम्बूद्वीप के द्वारों की ऊंचाई
ख - सर्व द्वीप समुद्रों के द्वारों की ऊंचाई ६५८ क - पुरुष वेदनीय कर्म की जघन्य बंध स्थिति ख- यशोकीर्ति नाम कर्म की ग- उच्च गोत्र कर्म की -६५६ त्रीन्द्रिय की कुलकोटी ६६० क- आठ स्थानों में पापकर्म के पुद्गलों का त्रैकालिक चयन
उपचयन
बंध
उदीरणा
वेदना
निर्जरा
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ख- आठ प्रदेशी स्कंध
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सूत्र संख्या ६७
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आठ प्रदेशावगाढ़ पुद्गल
समय की स्थितिवाले
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गुण काले-यावत्-आठ गुणरूखे पुद्गल
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स्थानांग-सूची
नवम स्थान. एक उद्देशक
संभोगी निर्ग्रथ को विसंभोगी करने के नो कारण ब्रह्मचर्य ( आचारांग प्रथम श्रुत स्कंध ) के नव अध्ययन नव ब्रह्मचर्य गुप्ति
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