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________________ श०४१ उ० १ प्र०८ १ १ १ १ १ 2 २-३ x of us 9 ७ ४ ४२७ षष्ठ संज्ञी महायुग्म शतक इग्यारह उद्देशक पद्मलेश्य संज्ञीपंचेन्द्रिय महायुग्मों का उत्पाद सप्तम संज्ञी महायुग्ग शतक इग्यारह उद्देशक शुक्ललेश्य संज्ञी पंचेन्द्रिय महायुग्मों का उत्पाद अष्टम संज्ञी महायुग्म शतक इग्यारह उद्देशक भवसिद्धिक कृतयुग्म २ प्रमाण संज्ञीपंचेन्द्रिय महायुग्मों का उत्पाद नवम संज्ञी महायुग्म शतक चौदहवें संज्ञी महायुग्म शतक पर्यन्त प्रत्येक के इग्यारह उद्देशक कृष्णलेश्य यावत्-शुक्ल लेश्य संज्ञी पंचेन्द्रिय महायुग्म का उत्पाद पंद्रहवें संज्ञी महायुग्म शतक से इक्कीसवें संज्ञी महायुग्म शतक पर्यन्त प्रत्येक के इग्यारह उद्देशक कृतयुग्म - २ प्रमाण कृष्णलेश्य यावत् शुक्ललेश्य अभवसिद्धिक संज्ञि पंचेन्द्रिय का उत्पाद भगवती-सूची इगतालीसवाँ शतक. प्रथम उद्देशक क- चार प्रकार का राशियुग्म Jain Education International भवसिद्धिक कृतयुग्म २ प्रमाण ख- चार प्रकार का राशियुग्म कहने का हेतु कृतयुग्म राशि प्रमाण चौबीस दण्डक के जीवों का उपपात सान्तर अथवा निरन्तर उपपात कृतयुग्म और त्र्योज राशि के सम्बन्ध का निषेध कृतयुग्म और द्वापर राशि के सम्बन्ध का निषेध कृतयुग्म और कल्योज राशि के सम्बन्ध का निषेध जीवों के उपपात की पद्धति For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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